Pierre Curie (1859–1906) wounds { पियरे क्यूरी (1859-1906 ) के घाव }
पियरे क्यूरी (1859-1906 ) के घाव
वैसे तो पियरे व मारी क्यूरी को उनके रेडियोधर्मिता संबंधी प्रयोगो तथा रेडियम व पोलोनियम जैसे तत्वों की खोज के लिए जाना जाता है।मगर पियरे क्यूरी ने इससे पहले चुंबकत्व संबंधी महत्वपूर्ण प्रयोग किए थे। उन्होंने चुंबकत्व पर तापमान के प्रभाव का अध्ययन करके जो नियम खोजा था उसे क्यूरी नियम कहते हैं। पियरे क्यूरी ने एक अत्यंत संवेदनशील ऐंठन का भी अविष्कार किया था और गुरुत्वाकर्ष संबंधी प्रयोग भी किए थे। पियरे क्यूरी को महान प्रयोगकर्ता माना जाता है।
अपनी पत्नी मारी क्यूरी के साथियों रेडियोधर्मी पदार्थों के उनके प्रयोग काफी मशहूर है। इन्होंने ही रेडियोधर्मिता के रूप में नाभकीय की ऊर्जा की खोज की थी और दर्शाया रेडियोविकिरण में धनावेशित , ऋणावेशित और आवेश-विहीन किरणें होती है।
रेडियोधर्मिता के विभिन्न गुणधर्मो व प्रभावों का अध्ययन करने हेतु किए गए उनके प्रयोगों में स्वयं अपने ऊपर किए गए प्रयोग भी शामिल है।
जून 1903 में दर्शकों से खचाखच भरे रॉयल इंस्टिट्यूशन के हाल में पियरे क्यूरी ने अपनी कमीज की आस्तीन ऊपर करना शुरू किया। दर्शकों ने उनकी वहां में जलने का एक निशान देखा। यह घाव उन्हें रेडियम लवण के नमूने से हुआ था। एक प्रयोग के दौरान उन्होंने यह नमूना अपनी बांह पर सिर्फ 10 घंटों के लिए ही बांधा था। उसके बाद प्रतिदिन उस घाव का अध्ययन करते थे जो विकिरण के कारण पैदा हो गया था। उन्होंने देखा कि 52 दिन बाद घाव तो ठीक हो गया मगर निशान बचा था।
इस प्रदर्शन के दौरान क्यूरी ने तोड़ा रेडियम डेस्क पर गिरा दिया था। पूरे 50 वर्ष बाद भी उस हाल में रेडियोधर्मिता पाई गई थी और कई सतहों को साफ करना पड़ा था।
रेडियोधर्मिता संबंधी इन प्रयोगों के दौरान जिन नोटबुक्स में उन्होंने अपने अवलोकन लिखे थे उनमें आज भी रेडियोधर्मिता मौजूद है और उन्हें देखने से पहले आज भी आपको एक शपथ पत्र पर दस्तखत करने होते हैं कि कोई नुकसान हुआ तो आप स्वयं जिम्मेदार होंगे।
पियरे और उनकी पत्नी मारी को पूरी आशा थी की रेडियम द्वारा त्वचा जलने का यह प्रभाव कैंसर के इलाज में मददगार साबित होगा। जिस प्रकार का विकिरण रेडियम से निकलता था , वैसा अन्य रसायनों से भी निकलता था। काम के दौरान ऐसे पदार्थों से निकलने वाली विकिरण का बुरा प्रभाव पड़ा। पियरे और मारी दोनों हमेशा बीमार रहने लगे। इसके बावजूद प्रयोग जारी रहे। इनके प्रयोगों ने चिकित्सा में रेडियम के इस्तेमाल का मार्ग प्रशस्त किया। 1903 में विकिरण संबंधी प्रयोगों के लिए भौतिकी का नोबेल पुरस्कार पियरे और मारी को हेनरी बैकेरल के साथ संयुक्त रूप से दिया गया।
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